कुंवारे बैठे लड़के-लड़कियों की एक गंभीर समस्या आज सामान्य रुप से सभी समाजों में उभर के सामने आ रही है।
इसमें उम्र तो एक कारण है ही मगर समस्या अब इससे भी कहीं आगे बढ़ गई है, क्योंकि 30 से 32 साल तक की लड़कियां भी कुंवारी बैठी हुई है। इससे स्पष्ट है कि इस समस्या का उम्र ही एकमात्र कारण नहीं बचा है। ऐसे में लड़के लड़कियों के जवां होते सपनों पर न तो किसी समाज के कर्ता-धर्ताओं की नजर है और न ही किसी रिश्तेदार और सगे संबंधियों की। हमारी सोच कि हमें क्या मतलब है में उलझ कर रह गई है। बेशक यह सच किसी को कड़वा लग सकता है लेकिन हर समाज की हकीकत यही है, 25 वर्ष के बाद लड़कियां ससुराल के माहौल में ढल नहीं पाती है, क्योंकि उनकी आदतें पक्की और मजबूत हो जाती हैं अब उन्हें मोड़ा या झुकाया नहीं जा सकता जिस कारण घर में बहस, वाद विवाद, तलाक होता है।
उच्च शिक्षा और हाई जॉब – बढ़ा रही उम्र
यूं तो शिक्षा शुरू से ही मूल आवश्यकता रही है लेकिन पिछले डेढ़ दो दशक से इसका स्थान उच्च शिक्षा या कहे कि कमाने वाली डिग्री ने ले लिया है। इसकी पूर्ति के लिए अमूमन लड़के की उम्र 30-32 या अधिक हो जाती है। इसके दो-तीन साल तक जॉब करते रहने या बिजनेस करते रहने पर उसके संबंध की बात आती है। इतना होते-होते लड़के की उम्र तकरीबन 35 के इर्द -गिर्द हो जाती है। इतने तक रिश्ता हो गया तो ठीक, नहीं तो लोगों की नजर तक बदल जाती है। यानि 50 सवाल खड़े हो जाते है।
चिंता देता है उम्र का यह पड़ाव
प्रकृति के हिसाब से 30 प्लस का पड़ाव चिंता देने वाला है। न केवल लड़के-लड़की को बल्कि उसके माता-पिता, भाई-बहन, घर-परिवार और सगे संबंधियों को भी। सभी तरफ से प्रयास भी किए, बात भी जंच गई लेकिन हर संभव कोशिश के बाद भी रिश्ता न बैठने पर उनकी चिंता और बढ़ जाती है।
मेट्रीमोनी वेबसाइट्स व वाट्सअप पर चलते बायोडेटा की गणित इसमें कारगार होते नहीं दिखाई देते। बिना किसी मीडिएटर के संबंध होना मुश्किल ही होता है – मगर कोई मीडिएटर बनना चाहता ही नहीं है। एक समस्या ये भी हम पैदा करते जा रहे है कि हम सामाजिक न होकर एकांतवादी बनते जा रहे है।
बेटी का बाप : ख्वाहिशें अपार, अरमान हजार
हर लड़की और उसके पिता की ख्वाहिश से आप और हम अच्छी तरह परिचित हैं। पुत्री के बनने वाले जीवनसाथी का खुद का घर हो, कार हो, परिवार की जिम्मेदारी न हो, घूमने-फिरने और आज से युग के हिसाब से शौक रखता हो और कमाई इतनी तगड़ी हो कि सारे सपने पूरे हो जाएं, तो ही बात बन सकती है। यह एक चिंतनीय विषय सभी के सामने आ खड़ा हुआ है। संबंध करते वक्त एक दूसरे का व्यक्तिव व परिवार देखना चाहिए ना कि पैसा। कई ऐसे रिश्ते भी हमारे सामने है कि जब शादी की तो लड़का आर्थिक रूप से सामान्य ही था मगर शादी बाद वह आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हो गया। ऐसे भी मामले सामने आते है कि शादी के वक्त लड़का बहुत अमीर था और अब स्थिति सामान्य रह गई। इसलिए लक्ष्मी तो आती जाती है ये तो नसीबों का खेल मात्र है।
क्यों नहीं सोचता समाज
समाजसेवा करने वाले लोग आज अपना नाम कमाने के लिए लाखों रुपए खर्च करने से नहीं चूकते लेकिन बिडम्बना है कि हर समाज में बढ़ रही युवाओं की विवाह की उम्र पर कोई चर्चा करने की व इस पर कार्य योजना बनाने की फुर्सत किसी को नहीं है। कहने को हर समाज की अनेक संस्थाएं हैं वे भी इस गहन बिन्दु पर चिंतित नजर नहीं आती।
पहल तो करें
हो सकता है इस मुद्दे पर समाज में पहले कभी चर्चा हुई हो लेकिन उसका ठोस समाधान अभी नजर नहीं आता। तो क्यों नहीं बीड़ा उठाएं कि एक मंच पर आकर ऐसे लड़कों व लड़कियों को लाएं जो बढ़ती उम्र में हैं और समझाइश से उनका रिश्ता कहीं करवाने की पहल करें। यह प्रयास छोटे स्तर से ही शुरू हो। * समाज के नेतृत्वकर्ताओं से अनुरोध है कि वे इस गंभीर समस्या पर चर्चा करें और एक ऐसा रास्ता तैयार करें जो युवाओं को भटकाव के रास्ते से रोककर विकास के मार्ग पर ले जा सकें। स्वार्थ न समझकर परोपकार समझ कर सहयोग करें !!!
राम नारायण
अध्यक्ष
युवा जायसवाल (सर्वo ) सभा, बक्सर
समाज में विवाह की बढ़ती औसत उम्र : एक सामान्य विश्लेषण
Reviewed by Creative Bihari
on
June 29, 2020
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